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नदी / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
हिमगिरि के
अंतस्तल से
निकल पड़ी
नन्हीं सी जलधारा
बढ़ती रही
प्रतिपल
आगे
लक्ष्य की ओर
अनेक व्यवधानों को
पार करती
बाधाओं से जूझती
घायल होती पर
बढ़ चलती
अगले ही पल
सागर की ओर ।
बिना थके
बिना रुके
रहती प्रवहमान
निरन्तर ।
देती है सन्देश
आगे बढ़ने का
तब तक
न मिल जाये लक्ष्य
जब तक ।