भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी / कविता कानन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिमगिरि के
अंतस्तल से
निकल पड़ी
नन्हीं सी जलधारा
बढ़ती रही
प्रतिपल
आगे
लक्ष्य की ओर
अनेक व्यवधानों को
पार करती
बाधाओं से जूझती
घायल होती पर
बढ़ चलती
अगले ही पल
सागर की ओर ।
बिना थके
बिना रुके
रहती प्रवहमान
निरन्तर ।
देती है सन्देश
आगे बढ़ने का
तब तक
न मिल जाये लक्ष्य
जब तक ।