आँख के पानी में एक क़तरा
पसीने की बूँद में
लहू की धार में
होठों की नमी में
एक-एक क़तरा समुद्र के अथाह जल में
घेरे पृथ्वी का तीन-चौथाई आयतन

रहता है क़तरा-क़तरा
क़र्ज बन कर धमनियों में
चमकता है सौंदर्य की धवलता में
लावण्य बन कर

वैसे तो महज नमक है
फीकी है लेकिन थाली पकवानों भरी
इसके बिना

इस चुटकी में जो नमक है
उसका एक रिश्ता तो हमारे
ज़ख़्मों से भी है, बहुत पुराना
कितना नमक है ज़रा सोचो
समुद्र के पानी में

क्या पता यह धरती के
गीले होठों का नमक है
कि धरती के बेटों की कठोर त्वचा से
रिसते पसीने का नमक

आसमान की आँखों से टपके
आँसुओं का नमक है समुद्र के आँचल में
कि तेज़ बुख़ार के बाद, समुद्र की
टूटती देह से निःसृत लवण

नमक का मतलब जानते हैं जो
लेते नहीं किसी से भी उधार में नमक

नमक को, बाज़ार की सबसे
सस्ती चीज़ समझने वालो,
यह सफ़ेद-सी चमकदार चीज़
किसी रोज़ समुद्र-तट से, जब
मुट्ठियों में उठाता है,
कच्चे सूत में लिपटा एक आदमी
हिल जाती हैं व्यवस्था की चूलें
नमक नहीं रहता सिर्फ़ नमक ।

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