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नमस्कार / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
पानी अगर सिर पर से गुज़रा, आलोचको
तो मैं किसी दिन आज़िज़ आकर अपने शरीर को
परात में गूँथ कर मैदे की लोई बना डालूंगा
और पिछले तमाम वर्षों की रचनाओं को मसाले में लपेट कर
बनाऊंगा दो दर्ज़न समोसे
और सारे समोसे आपकी थाली में परोस दूंगा
तृप्त हो जाएंगे आप और निश्चिंत
कि आपके अखाड़े से चला गया
एक अवांछित कवि-कथाकार
नमस्कार !