पखाने गिनने को अफसर लगा है
रात दिन आंख रखता है लोटा-बोतल लेकर
फिरने वालों पर
कोई दिखे तो पंचायत में शिकवा लगाता है
सरपंच तो रूपया दो अफसर को पांच सौ
फिर मजे से जाओ खुल्लमखुल्ला महीना भर
नर्भदा बाई कहती है पखाने में उनको कब्जी हो गई
गंगवाल पंसारी कहता है खुले में जाने का मजा अलग है
पखाने में बू भराती है
मोनू और टुन्नी नए ब्याहे है
एकांत टेम संग दिसा-मैदान जाते है तो ही मिलता है
हमारे टोले में बात अलग है
भात-सब्जी टेम से जुट नहीं पाती
बच्चों को दस्त लगे रहते है
प्रधान जी जो आप गाँधी बाबा की न सुनते
जो आप आंबेडकर की सुनते
जो आप मार्क्स बाबा की सुनते
थाली में रोटी गिनने के पीछे लगाते अफसर
तब हम रोटी खाते तब हम चावल खाते
कई दिन गुजरे रोटी बेलने को हाथ तरसते है
कोदों खा खा
पेट ख़राब ।