नर्मदा में नौका विहार / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
अम्मा बापू भैया औ मैं,
मिलकर पूरे चार हुए।
करना था नौका विहार तो,
उसमें सभी सवार हुए।
नाव बड़े इंजन वाली थी,
सर सर-सर सर भाग चली।
नदी नर्मदा मैया कि जो,
गोदी में थी बढ़ी पली।
रेवा के दोनों तट कैसे,
सुन्दर मनमोहक दिखते।
शीतल जल कण मोती जैसे,
ठिल-ठिल ठिल-ठिल हँसते।
एक तरफ़ ओंकारेश्वर थे,
एक तरफ़ थे ममलेश्वर।
नदी नर्मदा बहती जाती,
करती कल-कल हर-हर-हर।
हवा चली तो ऊँची लहरें,
हँसती और उछलती थीं।
डाल हाथ में हाथ पवन के,
मस्ती करती चलतीं थी।
हाथ डालकर ठण्डे जल में,
लहरों का आनंद लिया।
चुल्लू चुल्लू पानी लेकर,
हाथों से कई बार पीया।
अम्मा ख़ुश थीं बापू थे ख़ुश,
भैया भी आनंदित था।
नदिया पार कर चुके थे हम,
लगा सामने फिर तट था।
नौका से हम बाहर निकले,
कूद-कूद तट पर आये।
शिवजी के अम्मा बापू ने,
हमको दर्शन करवाये।