भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहि बजैछी, की बाजब हे / रूपम झा
Kavita Kosh से
नहि बजैछी, की बाजब हे
बहिर बौक आकाश बनल छी
आमक, नीमक गाछ शांत अछि
प्रात काल अछि पात शांत अछि
एहने दृष्य बनल अछि नित-नित
झलफल साँझ जका ओझल हम
लघुतम अंतिम साँस बनल छी
दाना चिड़ै चुनै अछि संगहि
संगही गाछक फूल खिलै अछि
मुदा एतय हम देख रहल छी
लोक-लोक सँ जरय मरै अछि
टुटल-फुटल विश्वास बनल छी
अगला-पिछला साल एक रंग
नहि देखैत छी किछु परिवर्तन
फाटल गुदरी सन लगैत अछि
आपन जीवन आनक जीवन
पतन शील इतिहास बनल छी