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नहीं / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
लाखों लोगों के बीच
अपरिचित अजनबी
भला,
कोई कैसे रहे!
उमड़ती भीड़ में
अकेलेपन का दंश
भला,
कोई कैसे सहे!
असंख्य आवाज़ों के
शोर में
किसी से अपनी बात
भला,
कोई कैसे कहे!