(राग रागेश्वरी-ताल त्रिताल)
नहीं जरा भी जिनमें ममता-राग-द्वेष-अस्मिता-मान।
जिनमें भरे सरलता-संयम-सर्वभूत-हित-रति अलान॥
जिनमें क्षमा-दया-शम-दम सब दैवी गुण, शुचि आत्मज्ञान।
ऐसे संत-स्मरण-मिलन-सेवनसे होता ध्रुव कल्यान॥
(राग रागेश्वरी-ताल त्रिताल)
नहीं जरा भी जिनमें ममता-राग-द्वेष-अस्मिता-मान।
जिनमें भरे सरलता-संयम-सर्वभूत-हित-रति अलान॥
जिनमें क्षमा-दया-शम-दम सब दैवी गुण, शुचि आत्मज्ञान।
ऐसे संत-स्मरण-मिलन-सेवनसे होता ध्रुव कल्यान॥