नहीं दर्द कोई यहाँ चाहता है।
जो खुद बेवफ़ा है वफ़ा चाहता है॥
सदा नफ़रतों की उगाता फ़सल जो
मुहब्बत की अब वह दुआ चाहता है॥
कलम भी पकड़ना नहीं सीख पाया
वो पैग़ामे-उल्फ़त लिखा चाहता है॥
मुहब्बत की राहों पर जो बढ़ गया हो
भला कब वह होना जुदा चाहता है॥
मुसीबत के बादल हरिक ओर घिरते
न जाने कि अब क्या ख़ुदा चाहता है॥