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नागफनी-सी रात / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
नागफनी-सी रात हो गई, बिन तेरे
अनहोनी-सी बात हो गई, बिन तेरे।
यूँ तो बहती हवा वसन्ती
रेशम-चीर से आती छनती
आज अकेले देख मुझे पर
कुलिश कठिन बरसात हो गई, बिन तेरे।
जूही-बेला साथ खिले हैं
प्रथम बार ये ऐसे मिले हैं
चिढ़ा रही है गंध चमेली
सौतन की यह जात हो गई, बिन तेरे।
साथ तुम्हारे मैं ऐसे था
नाद-कुण्डली में, जैसे था
तब दो थे, अब तो जीवन में
आहों की बारात हो गई, बिन तेरे।