भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नागरी-ग्रामीणा / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माधुरि नागरि! घरे बसु रंग - मंच पर आबि
जुटलि भिल्लिनी काकमुखि, डफरा पर मुह बाबि।।96।।

वीणा वेणु मृदंग लय संगत पद - गति छन्द
बन्द करिअ, मादल बजल, नाचत भिल्लिनि मन्द।।97।।

हीरक हार उतारि उर हारी भील क गाम
पहिरल, माला करजनि क झाँपल लाल ललाम।।98।।

मन - ठीका टेकल पदेँ, नूपुर माथ चढ़ौल
हार डाँर मे कसि जनी, डरकस गराँ बन्हौल।।99।।

कच कलाप, दृग भंगिमा, अधर हँसी संगीत
बिसरि जाह! नागरि एतय आम मीठ, मधु तीत।।100।।

मूनब नैन सुनैनि! कल - भाषिनि चुप साधबे
मूढ़ वधू! कल-बैनि! काव्य-कला नहि लाधबे।।101।।