भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नाम ईश्वर का सबेरे शाम है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
नाम ईश्वर का सवेरे शाम है।
बस यही आराधना का नाम है॥
रब उसे बोलो कहो भगवान या
रम रहा हर एक में बस राम है॥
धर्म मज़हब का तमाशा किसलिये
जब बसा सब में वही अभिराम है॥
है उसी की सब यहाँ कारीगरी
हम थकें रब को कहाँ विश्राम है॥
बैठ कर पल भर नयन हम मूँद लें
शांत मन को मिल रहा आराम है॥
बस रहा है जो चराचर जगत में
ईश ही वह मात्र शोभाधाम है॥
छोड़ने की बात छोड़ो थाम लो
प्रभु चरण रज मिल रही बेदाम है॥