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नारद बाबा कही वा दिनाँ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
नारद बाबा कही वा दिनाँ, ब्रज की अति मीठी माटी।
तातैं चाखन कौं मैया ! रसना सौं रही तनिक चाटी॥
सबरे बोलत झूठ, सुनौ, मैं नायँ कबहुँ खाई माटी।
तुहूँ रही पतियाय इनहि, यासौं न बात नैकहुँ काटी॥
मानि लर्ईं तूनैं इनकी नकली बातैं सबरी खाँटी।
यासौं पकरि मोय डरपावति, लै अपने कर में साँटी॥
काँपि रह्यौ डर सौं मैं, तौहू आँखि तरेरि रही डाँटी।
मैया ! तू ?यौं भई निरदई, कैसें तेरी मति नाठी॥
खोल दन्नँ मुख, देखि अबहिं तू, नैकु कतहुँ जो होय माटी।
का जगात, जब डारि दई मैंने अपनी सबरी छाटी॥