भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नारा: दो / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हैं पूछ्यो
थे अतरै सालां सूं
फलाणचंदजी रा ई जैकारा
क्यूं लगवावो ?
वांरै
मिनखपणै रा जैकारा भी लगवा सको
वै बोल्या
फलाणचंदजी रै जैकारा सूं
म्हानै गादी सूंपिजै
पण
फलाणचंदजी रै मिनखपणै रै
जैकारां सूं
जे सगळां रो मिनखपणो जागज्यै
पछै
म्हानै कुण पूछै?