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नाराज़ आदमी का बयान-1 / नीलाभ
Kavita Kosh से
मुझे अब किसी भी चीज़ में
दिलचस्पी नहीं रह गई है
न दुनिया में
न उसके मूर्खतापूर्ण कारोबार में
मैं सिर्फ़ एक सीधी, सरल ज़िन्दगी
जीना चाहता हूँ
पसीने की गन्ध को
ताज़ा पानी से मिटाते हुए
दिन भर की थकान को
गा-बजा कर दूर करते हुए
भात की महक में
माँ के दूध का सोंधापन
और दाल में पड़ी खटाई की फाँक में
बचपन की साथिन के होंटों की सनसनी
महसूस करते हुए
सीधी, सरल ज़िन्दगी
जो बीसवीं सदी के
इन आख़िरी वर्षों में
सबसे कठिन चीज़ है
रहे शब्द
तो शैतान ले जाए उन्हें
वे मुझसे नहीं थके
पर मैं
उनसे ऊब गया हूँ