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ना हम तुमसे नेह लगाते / विनोद तिवारी



ना हम तुमसे नेह लगाते
ना तुम मन की आस तोड़ते

हमको यदि विश्वास न होता
तुम कैसे विश्वास तोड़ते

लख पाते मुख-चन्द्र तुम्हारा
हम अपना उपवास तोड़ते

उनको वीराने भाते हैं
जिनके दिल मधुमास तोड़ते

हमने पाया है काँटों को
फूलों का उल्लास तोड़ते

तुम्हें शिकायत थी तुम कहते
हम बंधन सायास तोड़ते