भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निमन्त्रण / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
कोनो गाछमे जनमल एकटा सुन्दर मधुमय फूल
पसरि गेल हमर हृदयमे मुस्कानक नव-नूतन रेख
आब ने लागत हिमयात्रीकेँ भदबा वा दिक्शूल
कथूसँ। जीवनपथमे सम्भव नइँए आब मीन वा मेख
कोनो नदी तट हमरा भेटल, लागल एकसरि एकटा नाह
घएलउँ लग्गा हाथ कि हँसि कए खेबि देलउँ मँझधारे
किछु चिन्ता नइँ। घुट्ठी धरि जल वा कि अथाह
ढाबुस बेंग बनल बइसल नइँ रहबइ गामक आब इनारे
कोनो गगनसँ देलक हुलकी एकटा उज्जर झकझक तारा
हमरा लागल, ककरो माथक थिक ई जगमग टिकुली
सत्त कहइ छी, तोड़ि ने पाएब हम ई सीमा-कारा
प्रेमक ज्योतिक। आब सहब नइँ विरहक ठनका-बिजुली
आब द्वारिका के सुखसुविधा हरत ने मार्गक बन्धन-बाधा
चलू कृष्ण, रास्ता देखइ छथि विद्यापति कवि के राधा