भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नियति (मौन से संवाद) / शशि सहगल
Kavita Kosh से
बहुत अच्छा लगता है मुझे
रंग-बिरंगा लट्टू
धागा लपेटते हुए उसे
खास एहतियात से कसा जाता है
और झटके से
छोड़ना होता है घूमने के लिए
तेज़ी से घूमते समय
ग़ायब हो जाते हैं सारे रंग
नहीं दिखता रंगों का फर्क
और नज़र आता है
कील पर घूमना
और रुकने पर, गिर जाना।