सिवा तुमहारे सचमुच जग में कौन हमारा है ?
जिसके उर में दुखियों के हित करूणा धारा है ।
तेरी अद्भुत सुन्दरता का कैसे गान करूँ ?
हम जैसी दुर्गुणधारी भी जिसका प्यार है ।
अक्षय निधि शिवत्व की संचित रहती गुरूता में,
सत्यं शिव सुन्दरम् का छवि सागर न्यारा है ।
काँटे और गुलाब सभी को स्नेह समान मिले,
वही अखिल चेतन सत्ता का पालन हारा हैं ।
जहाँ पागलों की मुराद आबाद हुआ करती,
वहीं खुला सबके हित पावन तेरा द्वारा है ।
राह देखते हुए बहुत दिन बीत गये अब तो,
सिमट रहा सब धीरे धीरे साँस पसारा है ।
आखिर कब आओगे मेरे प्राणों के प्यारे !
आँसू आँसू हुई जिन्दगी पर न बिसारा है ।
आ जाओं मैं तुम्हें कैद कर लूँ निज प्राणों में,
सहा नहीं जाता विछोह ले लिए दुधारा है ।
अलसाते हैं नहीं नयन अपलक ही रहते हैं,
अब तक आये नहीं क्या न्याय तुम्हारा है ?
चाह यही पद पंकज धो लूँ किन्तु क्षमा करना,
गंगा जल है नहीं नयन का निर्झर खारा है ।