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निर्भय / सुब्रह्मण्यम भारती
Kavita Kosh से
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
चाहे पूरी दुनिया हमारे विरुद्ध हो जाए,
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
चाहे हमें अपशब्द कहे कोई, चाहे हमें ठुकराए,
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
चाहे हम से छीन ली जाएँ जीवन की सुविधाएँ
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
चाहे हमें संगी-साथी ही विष देने लग जाएँ
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
चाहे सर पर आसमान ही क्यों न फटने लग जाए
निर्भय, निर्भय, निर्भय !
मूल तमिल से अनुवाद (कृष्णा की सहायता से) : अनिल जनविजय