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निर्वासन / तेनजिन त्सुंदे / अरुण चन्द्र रॉय

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हमारी छतें चूती थीं
और चारों दीवारें कभी भी भहर कर गिर सकती थीं
फिर भी हमें घर जाने की जल्दी होती थी

हम अपने घर के आगे
उगाते थे पपीते
आँगन में मिर्ची
और पीछे बगीचे में नींबू

हमारे मालघर (मवेशियों को रखने वाला घर) की छत्ती पर
लटकती थी लौकियाँ और कद्दू
इन्ही के बीच से कूद कर निकलते थे बछड़े

छत पर लटकती थी फलियाँ
और अँगूर की लताएँ
खिड़कियों से घुस आती थी मनी -प्लाण्ट की लताएँ
घर के भीतर
मानो घर को उग आईं हो जड़ें

आज आँगन में बस गए हैं जँगल
अब अपने बच्चों को कैसे बताएँ
कहाँ से आये हैं हम ?
कहाँ हैं हमारी जड़ें ?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय