निष्काम कर्म साधना / राधेश्याम ‘प्रवासी’
फल की साध त्याग करके साधक साधना करो!
जीवन क्षणिक जीव अविनाशी जग मायामय छलना है,
नश्वरता तम में दीपक बन तुम्हें चिरंतन जलना है,
कुछ पाने की आश त्याग कर आराधना करो!
ध्याता! ध्यान करो, तुमसे है ध्येय तुम्हारा दूर नहीं,
दृष्टा दर्शन करो इष्ट का दृश्य तुम्हारा दूर नहीं,
शाश्वत कर्मों से भोगों की मत चाहना करो!
कब रवि ने प्रकाश के बदले जगती से अभिलाषा की,
गगन, पवन, सिकता, घन ने कब कुछ पाने की आशा की,
कर्तव्यों से अधिकारों की मत याचना करो!
तुम में आत्म-तेज गौतम का, कपिल पतंजलि की लव है,
ज्ञान, भक्ति, वैराग्य भगीरथ के तपक का चिर वैभव है,
बढ़ो करो पुरूषार्थ विश्व में सद्भावना भरो!
इष्ट देव के चरणों में संचित पुण्यों को अर्पित कर,
तुम्हें अमरता मिल जायेगी निज को उन्हें समर्पित कर,
स्वार्थ, त्याग, निष्काम, कर्म से अब कामना करो!
भटक चुके हो बहुत ‘प्रवासी’ जनम-मरण के फेरे में,
मिल न सकेगी शान्ति कभी भी चिर अशान्ति के घेरे में,
मानस में मानवी सृष्टि की शुभ सर्जना करो!