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निष्ठुर / सौमित्र सक्सेना
Kavita Kosh से
घोंसले से बिछुड़ी
बरसात की चिड़िया एक
आती है
रोशनदान से
कमरे के पंखे से कटकर
आ गिरती है
गोद में मेरी ।
मैं उसे
वैसे ही
खिड़की से बाहर
उड़ा देता हूँ
हर बार और
लिखने लगता हूँ एक और शब्द
अपनी प्रेम कविता का
दूसरे शब्द के लिए
मुझे उसके
दोबारा आकर गिरने की
प्रतीक्षा करनी होती है ।