नींद में ख़लल / सरोज परमार

पथराई गली पर बूटों की
खिट खिट निरंतर
टिक टिक टप टप हुम्म
बोझा ढोते खच्चर
कुछ आवाज़ें टिटकराने की
कुछ फुसफुसाहतें
कुछ दबी-घुटी हंसी
ओसारे में सोई चिढ़िया की
नींद में ख़लल डालती है।

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