नूतन परिचय का आमन्त्रण,
देते कुसुमितलोचन तरुगण।
नव जागरण मन्त्र से मोहन,
धरा-गगन का प्रेमलिंगन,
आन्दोलित करता अन्तर्मन,
निशिदिन प्रतिक्षण।
चिरसुन्दर के अन्तर्लोचन,
बरसाते कुसुमों के मार्गण,
धरामृत्तिका के सम्मोहन,
सिन्दूरित वन।
वर्ण-वर्ण में नाद-मीड़ भर,
गगनसिन्धु में छन्द बन लहर,
सुना रहा अन्तर्मन का स्वर,
मलय समीरणं
नीलाम्बर को ज्योति-आभरण,
पहना स्वर्णिम ग्रीवालम्बन,
खोल रहे छवि का वातायन,
रवि-शशि उड़गण।
स्याह, सुर्ख, कासनी, तामड़े,
अखरोटी, धूसर, मखियारे,
मतवाले मतंग कजरारे,
उड़ते घन-गन।