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नूनू बाबू सिनी सें / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
अरे बुतरुआ पिहनें चश्मा
होय वाला छौ नया करिश्मा
जे नै चाहै पढ़ै-लिखै लेॅ
तहियो ऊँचे-ऊँच चढ़ै लेॅ
कोय मायने में ज्ञान नै कम
पन्नीये रँ बुद्धि चमचम
ओकरो लेॅ छै अवसर चानी
है ले एक सौ एक पिहानी
अरे बुतरुआ इन्टु-पिन्टु
आनलेॅ छियौ नया निघण्टु
घोकें, दुसरौ केॅ घोकबाव
अबकी नै छोड़ना छै दाव
तहूँ बहावें ज्ञान रोॅ बोहोॅ
पंडित-ज्ञानी मानतौ लोहोॅ ।