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नेता और अफसर / ओम धीरज
Kavita Kosh से
नेता डरा दिखे अफसर से, अफसर नेता से
दोनों अपने फन में माहिर, हैं अभिनेता से।
सच में डर है नहीं किसी को, दुनिया को भरमाएँ,
सांठ-गांठ कर ‘माल-मलाई’, चुपके-चुपके खाएँ,
जिद्दी साँड़ भगाते दिक्खे, सड़े रहेठा से।
अनफिट हुआ नया कपड़ा तो, गन्दा उसे बताएँ,
उसी एक से साफ-सफाई, का मतलब समझाएँ,
पीटे कसकर नदी-पाट पर, सधे बरेठा से।
कौआ मार टाँग दो देखे, पास न कोई आए,
काँव-काँव कर दूर-दूर से, अपनी व्यथा सुनाएँ,
यही लोक में चलता आया, समझो नेता से।
‘एकै साधै सब सध जाए, सब साधे सब जाय,
किसी एक ‘जड़’ को सींचे तो फूले-फले अघाय’
‘बाप’ कई अर्थों में करता चर्चा ‘बेटा’ से।