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न घटा जो यहाँ कभी पहले / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
न घटा
जो यहाँ
कभी पहले
अब तो घटा-
नवाचार के नाम पर,
आदमी से आदमी कटा,
लोकतंत्र का
चोला फटा।
रचनाकाल: १०-०१-१९८०