जीकर भी
न जीने की संज्ञा से जीवित हूँ मैं
रुक गई नाव के हाथ थामे
प्रवाहित जल में
अप्रवाहित खड़ा मैं
अजनबी-अकेला-
न मैं किसी का
न कोई मेरा।
मौत जी रही है मुझे
जिंदगी के साथ
अपनी जिंदगी में
रचनाकाल: २०-१०-१९६६
जीकर भी
न जीने की संज्ञा से जीवित हूँ मैं
रुक गई नाव के हाथ थामे
प्रवाहित जल में
अप्रवाहित खड़ा मैं
अजनबी-अकेला-
न मैं किसी का
न कोई मेरा।
मौत जी रही है मुझे
जिंदगी के साथ
अपनी जिंदगी में
रचनाकाल: २०-१०-१९६६