भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पण्डोह / तुलसी रमण
Kavita Kosh से
विकास बुद्धि ने
रोक दिया
छल-छलाती निरंतर बहती
नील श्वेत नदी का रास्ता
बीच में ही टोक दिया
जल का राग
पृथ्वी की धमनी में
जम गया रक्त का धक्का
पाशबुद्ध है
मुनि वशिष्ठ की विपाशा
क्रोध में काँप रही
'गहरी हरी झील
(5 नवम्बर 1990 मण्डी से मनाली जाते हुए)