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पतन / महेन्द्र भटनागर

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देश में
विशाल रूप में
उमड़ रहा
उफ़न रहा —

जाति-द्वेष: धर्म-द्वेष
वर्ण-भेद: जन्म-भेद

मैल ! मैल ! मैल !
गर्द ! गर्द ! गर्द !

तीव्र मानसिक तनाव
शत्रु-भाव।

है विषाक्त हर दिशा,
निगल रही विवेक को
अशुभ गहन घृणा-निशा।

सतर्क और भीत
व्यक्ति-व्यक्ति से।
हो रहा प्रतीत —
लौट आ रहा
अतीत !

हिंस्र जंगली,
ब-ख़ूब
चल रही
समाज में
तथाकथित कुलीन
जाति-दर्प धाँधली।

मनुष्य:
जाति-धर्म-वर्ण-जन्म से विभक्त
दब रहा निरीह
मिट रहा अशक्त।

शर्म ! शर्म ! शर्म !
निंद्य ! निंद्य ! निंद्य !

मन-मुटाव
छल-कपट
दुराव।

सावधान !
धैर्यवान नौजवान !
जाति-द्वेष-भावना-प्रवाह से,
क्रूर जातिगत गुनाह से
सावधान !
वर्ण-जन्म धारणा

प्रभाव से,

एकता-विनाशिनी
विलग-विचारणा

प्रभाव से,

सावधान,
नौजवान !