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पत्ते और जड़ें / अन्द्रेय वज़निसेंस्की / श्रीकान्त वर्मा

ले जाया गया उसे, नीचे दफ़नाने को नहीं
पहनाने को ताज, ले जाया गया उसे ।

ग्रेनाइट-सा भूरा
और काँसे-सा लाल
भाप उगलते इंजन जैसा
कवि, यहाँ जीवन जीता था
          बेहद अस्त-व्यस्त,
साधारण जनता के आगे नतमस्तक
उसने झुकाया नहीं माथा राजमार्ग पर
द्वार पर सुलगता था लिलॉक का पेड़
स्वेद में नहाए हुए गिरते
        नक्षत्रों का निर्झर

पीठ पर भाप
जैसे तवे पर रोटी का फूल

आज उसी कवि का घर, भाँय-भाँय,
कोई भी नहीं,
भोजन के कमरे में कोई नहीं
रूस में कोई आत्मा नहीं

कवि इसी तरह ढूँढ़ता है अपना अरण्य —
जाता है नंगे सिर,
         जैसे गिरजों में लोग ।
गूँज रहे खेतों से होता हुआ
खेतों के झुरमुट या ओक को ।
उसकी जययात्रा है उसकी उड़ान,
वापसी का मतलब है
लगातार चरागाहों पर, नक्षत्र पर चढ़ान,
झूठे हैं आभूषण ।

झरते हैं पत्ते, जंगल माथे से उतार ; पृथ्वी पर
रखता है ताज, भीतर गहरे में ताक़तवर
जड़ें करवट लेती और लपकती हैं
जैसे कोई मुड़ा हुआ हाथ

अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीकांत वर्मा