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पत्तों के हिलने की आवाज़ / एकांत श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
तुम एक फूल को सूँघते हो
तो यह उस फूल की महक है
शब्दों की महक से
गमकता है काग़ज़ का हृदय
कस्तूरी की महक से जंगल
और मनुष्य की महक से धरती
धरती की महक मनुष्य की महक से बड़ी है
मगर धरती स्वयं
मनुष्य की महक और आवाज़ और स्वप्न
से बनी है
दिन-ब-दिन राख हो रही इस दुनिया में
जो चीज़ हमे बचाये रखती है
वह केवल मनुष्य की महक है
और केवल पत्तों के हिलने की आवाज़