हर आदमी हो सकता है पेड़
पेड़ की तरह जड़ों से चूस सकता है लवण
कण कण में संचित कर सकता है
मिट्टी का नमकीन स्वाद
वह आदमी जिसने शब्दों की खेती की
विशाल था पेड़ की तरह
जड़ों से खींच लेता था जीवनरस
हरी पत्तियों पर धूप के अक्षरों से लिखा था
पत्थरों का इतिहास
हर आदमी एक एक पत्थर
पत्थर की तरह दिल में छुपा रखता है
सूखे हुए आँसु के दलील
लहू-लुहान फ़सिल
पत्थरों ने कभी गोपनता में
बोआके रखते हैं बीज
वो बीज अंकुरित होते ही
पत्थर बन जाते हैं पेड़ ।