भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परछाईं-सा / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अँधेरे में
परछाईं नहीं होती है
—नहीं होता
उजाला अँधेरे में
उजाले में परछाईं-सा
अँधेरा होता है
लेकिन
बढ़ते-बढ़ते जिस में
ख़ुद
लय हो रहता है वह ।
—
13 जुलाई 2009