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परवाज़ / रतन सिंह ढिल्लों
Kavita Kosh से
शब्द को
धुन को
आवाज़ को
सुर-ताल को
विचार को
प्यार को
ख़ुशबू को
उड़ान को
मुस्कान को
और तेरी-मेरी
पहचान को
कोई दीवार
कोई तार
कोई बंदूक
कोई तलवार
रोक नहीं सकती
आ शब्द बन जाएँ
अर्थ बन जाएँ
सुर-ताज बन जाएँ
और आजाद़ पंछियों की
परवाज़ बन जाएँ ।
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला