परिछनि गीत / शशिधर कुमर 'विदेह'
द्विरागमन / दुरागमन / गौना केर बादक परिछनि
चलू–चलू सखी आजु अयोध्या, परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।
नेने आयल छथि संग मे बहुरिया, जनकपुर केर चान केँ ।।
गेल छलाह यज्ञक रक्षा लए,
मुनि कौशिक केर संग ।
जाय जनकपुर कयलन्हि ओहिठाँ,
शिवक धनुषकेँ भंग ।
जाय मिथिला नगरिया रखलन्हि ओ, मिथिलेशक मान–सम्मान केँ ।
चलू–चलू सखी आजु अयोध्या, परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
कान दुहु कुण्डल लटकै छन्हि,
गला मे कञ्चन हार ।
डाँढ़ शोभन्हि बिअहुतिया धोती,
माथ पर ललका पाग ।
सुन्नर हिनकर सुरतिया लगय छन्हि, आ मुँह पर मधुर मुस्कान गे ।
चलू – चलू सखी आजु अयोध्या, परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
श्रीराम–सिया, भरत ओ माण्डवी,
लखनोर्मिल, शत्रुघ्न–श्रुतिकीर्त्ति ।
मोनहि मोन होइछ हर्षित सभ,
देखि ई अनुपम चारू जोड़ी ।
सुन्नर चारू ई जोड़िया लगैत’छि, सखी जेना चकोर आ चान गे ।
चलू–चलू सखी आजु अयोध्या, परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।
कनक दीप ओ घी केर बाती,
कञ्चन थार सजल दुहु हाथ ।
हर्षित मन परिछथि तीनू माता,
एकाएकी बारम्बार ।
देखि चारू बहुरिया, होइ छथि हर्षित, सभ बासी अयोध्या धाम केर ।
चलू–चलू सखी आजु अयोध्या, परिछऽ रघुवर श्रीराम केँ ।।