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परिजादियों का शाप / संतोष श्रीवास्तव

महल की मुंडेरें
रात को चीखती हैं
बबूल के कांटेदार
पेड़ों में उलझ कर
घड़ी दो घड़ी बाद
खामोश हो जाती हैं

बस्ती के बाशिंदे
खंडहर महल और
टूटी फूटी मुंडेरों को
देखने आए पर्यटकों को
मनगढ़ंत कहानी सुनाते हैं

बहुत नज़दीक से गुजरता है
ऊँटों का काफ़िला
जिसकी कूबड़ उठी पीठ पर
मखमली पालकी में बैठकर
सैर करने आई है
फिरंगी मलिका

रात को ठहरने के बावजूद भी
चीख उसे सुनाई नहीं देती
वह जानती है
उस खूनी मुंडेर के किस्से
उसके ही पूर्वजों ने ढाए थे
जुल्मों सितम
महल की परीजादियों पर
परिजादियों का शाप
न मुंडेरों को ढहने देता है
न बसने