भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पर्वत: एक बालक / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरित-भरित चंचल वन अंचल चारू कात पसारि
कोर उठाय गोर शिशु अवनी जननी रहलि दुलारि
मुख उज्ज्वल, अम्बर उच्छल जनि भालो भाग्य विशाल
प्रकृति जननि उर द्रवित दुग्ध हिम पिवइछ ललकि रसाल
नगन, मगन मन, सतत दिगम्बर दिग धवलित मुसुकान
हाथ उठाय चहे छथि पकड़य दूर न मामा चान
धातु-रतन कय जतन जोगाबय खेल खेलौने ढेर
सुधि-बुधि बिसरि अचेतन, चेतन रितल बितल कत बेर
खेलइत कखनहुँ गुड़रि उठै छथि बाघ सिंह होहकारि
खनहु वन-बिहग कल धुनि सीटी बजबथि मधुर सम्हारि
अगर - डगर घाटी - परिपाटी घुमथि रेङथि कत ढंग
गुफा नुकाथि, कुदथि फुर-फुर पुनि निर्झर झरना संग
तट-तराइ मे करथि चराइ धेनु धन अगनित ढंग
गाछ लता लय गुल्ली-डंडा भाँजथि - भुजथि उमंग
आँकड़ पाथरकेर पथार लगबैछ हाट कत मेल
शिशु पर्वतक केहन शैशव शुचिरुचि मत देखिअ खेल
दौड़-धूप कय थाकि पानि पिबइछ पुनि झरना कात
फल-दल तोड़, ओज वन - भोजन परसल दोना पात
अवनी जननी कोर सजाबथु अपन बंशधर मानि
नाम महीधर चिरजीवी, पर्वत नहि गर्वक हानि