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पर्वत से काली घटा टकराई / आनंद बख़्शी
Kavita Kosh से
आ आ परबत से काली घटा टकराई
पानी ने कैसी ये आग लगाई
हाय आग लगाई
दिल देने दिल लेने की रुत आई
परबत से काली घटा ...
मारे शरम के मैं तो सिमट गई
चुनरी मेरी मुझसे लिपट गई
ऐसे में तूने जो ली अंगड़ाई
आग लगाई
दिल देने दिल लेने की रुत आई
परबत से काली घटा ...
मस्ती में आके मैं झूम लूंगा
रोको मुझे मैं तुम्हें चूम लूंगा
मस्ती में आके मैं झूम लूंगी
रोको मुझे मैं तुम्हें चूम लूंगी
छेड़ो ना मुझको यूं छोड़ो कलाई
आग लगाई
दिल देने दिल लेने की रुत आई
परबत से काली घटा ...