दिन गड़बड़
पर यही समय है
हाथ पकड़ कर चलने का
एक समय था
जब त्याग मुहब्बत ने
हमको था जोड़ा
पर लोभी
छली हवाओं ने
सबको पोर-पोर तोड़ा
नहीं मिले
मन ,यही समय है
मन से मन का मिलने का
जाति-धरम के
छल-प्रपंच को
चलो डुबायें सागर में
विष-विरोध में
निकलें मिलकर
अमरित भरकर गागर में
टूट गये
जो , यही समय है
रिश्तों के फिर जुड़ने का
हिलमिल कर
बोलें बतियायें
आखर-आखर नेह भरें
वक्त हुआ
जो मैला-मैला,
उसको मिलकर साफ करें
बिला गये
जो, यही समय है
फिर नये मूल्य रचने का