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पहचान / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
Kavita Kosh से
अचानक बेमालूम ही तुमसे जुडी हूँ
तुम्हें जान सकूं ,
यह जानने को गंतव्य से मुडी हूँ.
पर!
तुम तो धुप की तरह खिसक गए
शाम !
लो रात आ गयी .
कल फ़िर धूप आयेगी
अब में तुमसे पहले खिसक गयी हूँ.
क्योंकि अब में तुम्हें पहचान गयी हूँ.