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पहचान / मोहन राणा
Kavita Kosh से
धीरे धीरे चलती है इंतज़ार की घड़ी
और समय भागता है खिड़की पर टंगे भाषा के कुम्लाहे परदों में
दीवारों पर रोशनी के छद्म रूपों में
छलांग लगाता इस डाल से उस डाल पर,
मन के अबूझमाड़ में हम खेलते लुका छुपी
जन्म चुना इसमें यह चेहरा मेरे लिए
नाम किसी और का दिया
उसे याद रखना मेरा काम
आजीवन लड़ाई
दुनिया घटती है चलती है दिन रात
भय के कोलाहल में घूमती,
इससे पहले कोई देख ले
चुपचाप मैं कानों को ढाँप दूँ
कि सुन लूँ उसकी गुनगुनाहट