भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पहाड़ / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
कोई न मुझे सकता उखाड़,
कोई न मुझे सकता पछड़;
मत करना मुझसे छेदछाड़,
मैं हूँ भारी-भरकम पहाड़।
[रचना: 7 मई 1996]