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पहाड़ की नारी / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
लोहे का सिर और वज्र कमर संघर्ष तेरा बलशाली
रुकती न कभी थकती न कभी तू हे पहाड़ की नारी !
तू पहाड़ पर चलती है, हौसले लिये पहाड़ी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
चंडी-सी चमकती चलती है, जीवन संग्राम है जारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
एक-एक हुनर तेरे समझो सौ-सौ पुरुषों पर भारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
बुद्धि-विवेक शारीरिक-क्षमता तू असीम बलशाली
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
सैनिक की मैया, पत्नी-बहिन मैं तुम पर बलिहारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !
समर्पित करती कविता तुमको, शब्दों की ये फुलवारी
रुकती न कभी थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !