भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहाड़ की नारी / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लोहे का सिर और वज्र कमर संघर्ष तेरा बलशाली
रुकती न कभी थकती न कभी तू हे पहाड़ की नारी !

तू पहाड़ पर चलती है, हौसले लिये पहाड़ी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !

चंडी-सी चमकती चलती है, जीवन संग्राम है जारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !

एक-एक हुनर तेरे समझो सौ-सौ पुरुषों पर भारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !

बुद्धि-विवेक शारीरिक-क्षमता तू असीम बलशाली
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !

सैनिक की मैया, पत्नी-बहिन मैं तुम पर बलिहारी
रुकती न कभी, थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी !

समर्पित करती कविता तुमको, शब्दों की ये फुलवारी
रुकती न कभी थकती न कभी तू, हे पहाड़ की नारी ! 