पाँव धरे दुलही जिहि ठौर रहे मतिराम तहाँ दृग दीने ।
छोड़ि सखान के साथ को खेलिबो बैठि रहे घर ही रस भीने ।
साँझहि ते ललकैँ मन ही मन लालन योँ रस के बस लीने ।
लौनी सलौनी के अँगन नाह सुगौने की चूनरी टोने से कीने ।
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।