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पाँव धोते बच्चे / मनीषा जैन
Kavita Kosh से
रेल की पटरियों सा
लम्बा जीवन
तपता झरता जीवन
पल पल होता क्षीण
कोई देता दिलासा
आयेगी कोई उम्मीद की रेल
सीटी बजा कर करेगी सचेत
माँ से रोटी हाथ में लेकर
पानी भरने जाते बच्चे
पानी में बार-बार
पांव धोते बच्चे
अपना चेहरा पानी में देख
हँसते बच्चे
सफेद झक चेहरा लिए
सिर पर पानी की बाल्टी उठाये
नंगे पैर जाते है स्कूल
फिर
घरों की ओर लौटते बच्चे
क्या कोई उनका स्वागत करने को है
वहाँ?