भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पान पात्र था प्रेम छात्र / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
पान पात्र था प्रेम छात्र!—
प्रेयसि के कुंचित अलकों में
उलझा था, बंदी पलकों में!
ग्रीवा पर थी मूँठ सुघर
मृदु बाँह, मधुर आलिंगन सुख
लेती थी प्रेयसि का उत्सुक!