कैसी बही आज ये पवन
पारे-सा बिखर गया मन
चूर-चूर सपनों को
प्यार से समेट लिया
रिसते हुये घावों पर
विस्मृति का लेप किया
व्यर्थ हुये पर सभी जतन
हो गये हैं फिर सजल नयन।
पारे-सा बिखर गया मन॥
काजल-सी रातों में
शोर था उजाले का
कह दिया पर आँखों ने
जीवन भर का लेखा
रुला गई भोर की किरन
दर्द और हो गया सघन।
पारे-सा बिखर गया मन॥