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पिछाण री पिछाण / हरीश बी० शर्मा
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अरे !
थम पंछीड़ा !
ढबज्या ....
देख
सूरज रो ताप बाळ देवैलो।
बेळूं सूं ले सीख
कै उड बठै तांईं
जित्ती है थारी जाण
जित्ती है थारी पिछाण।